जून 1818 में पेशवा ने अपनी गादी या सिंहासन सर जॉन मैल्कम को छोड़ दिया और ब्रिटिश सरकार के राजनीतिक कैदी के रूप में कानपुर के पास बिठूर में रहने चले गये। 27 फरवरी, 1827 को सात दिनों तक चली भीषण आग से पूरा महल पूरी तरह जल गया। केवल भारी प्राचीर, मजबूत प्रवेश द्वार और दबी हुई नींव ही आज भी एक शक्तिशाली साम्राज्य के उत्थान और पतन की गवाही दे रही हैं।
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