दशाश्वमेध घाट – सबसे लोकप्रिय

प्राचीन पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान ब्रह्मा ने यहां दस (दस) अश्वमेध यज्ञ किए थे और यहां स्नान करने से दस अश्वमेधों का फल मिलता है। गंगा के किनारे के सभी घाटों में से, यह सबसे लोकप्रिय घाट है और सुबह और शाम तीर्थयात्रियों का केंद्र है। इसे “ब्रह्म द्वार” (ब्रह्मा का द्वार) के नाम से भी जाना जाता है और इसका पुराना नाम रुद्रसरोवर या घोड़ाघाट है और यह काशी के पांच ‘पंचतीर्थों’ में से एक है। गंगा के आने के बाद रुद्रसरोवर लुप्त हो गया और यह स्थान काशी में प्रमुख तीर्थस्थल माना जाता रहा और प्रयाग राजघाट के नाम से जाना जाने लगा। वाराणसी के घाटों में तीन घाट बहुत प्रमुख हैं और इन तीनों में से दशाश्वमेध घाट का सर्वाधिक महत्व है। यहां किये गये कर्म नष्ट नहीं होते और सदैव अक्षय रहते हैं। वर्तमान घाट का निर्माण 1748 में पेशवा बालाजी बाजीराव ने करवाया था। गंगा आरती प्रतिदिन सुबह और शाम को की जाती है।

(Source: Display Board)

(English to Hindi Translation by Google Translate)

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