चत्तुशृंगि मंदिर और देवस्थान संक्षिप्त इतिहास और जानकारी
चत्तुशृंगि देवी पुणे शहर की अधिष्ठात्री देवी हैं, जिन्हें महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती और अंबरेश्वरी के नाम से भी जाना जाता है। उनका मंदिर पुणे के उत्तर-पश्चिम में एक पहाड़ की चोटी पर स्थित है। यह प्रकृति और प्राकृतिक सुंदरता के बीच में है। 90 फीट ऊंचे और 125 फीट चौड़े इस मंदिर की देखभाल चत्तुशृंगि देवस्थान के ट्रस्टी पूरे समर्पण और भक्ति के साथ करते हैं।
इस मंदिर के पीछे बहुत ही रोचक कहानी है। पुणे में पेशवाओं के दुर्लभदास नाम के एक बैंकर यानी साहूकार और टकसाल के मालिक सप्तश्रृंगी देवी के बहुत बड़े भक्त थे। हर साल चैत्र की पूर्णिमा के दिन वह देवी के दर्शन के लिए पुणे से नासिक के पास वाणी तक यात्रा करते थे। चूँकि वह बूढ़ा और शारीरिक रूप से कमज़ोर हो गया था इसलिए वह ऐसा नहीं कर सका। उसने दुःखी होकर देवी से प्रार्थना की। उसे स्वप्न में देवी का साक्षात्कर दर्शन हुआ। उसने उसे पुणे के उत्तर-पश्चिम में स्थित एक पहाड़ पर आने और वहां खुदाई करने के लिए कहा। उसके द्वारा बताए गए स्थान का पता लगाया गया और देखा… स्वयंभू देवी पहले से ही वहां मौजूद थीं। यह उसका मंदिर है।
दुर्लभशेठ ने इस अवसर का जश्न मनाने के लिए एक चत्तुशृंगि रुपया भी चलाया। दिन-ब-दिन यह मंदिर महत्वपूर्ण स्थान बनता जा रहा है और पूरे भारत से इसके भक्त आने लगे हैं। दुर्लभशेठ के बाद दस्तगीर गोसावी और उनके शिष्यों ने मंदिर की देखभाल की। बाद में यह आंगल परिवार के पास चला गया और आंगल परिवार की छठी पीढ़ी इस मंदिर की देखभाल कर रही है।
(Source: Display Board)