Vikram Pendse Cycles – An Extraordinary Avocation

Vikram Pendse Cycles – An Extraordinary Avocation

Vikram Pendse Cycles – An Extraordinary Avocation – This photo was taken at Vikram Pendse Cycles Private Museum in Pune (Maharashtra).

विक्रम पेंडसे को बचपन से ही मोटरसाइकिल का शौक रहा है। जब उन्होंने वाणिज्य में डिग्री प्राप्त की, तब भी उन्हें स्कूटर और मोटरसाइकिल के साथ काम करने के अपने जुनून के बारे में पता था।

1995 में 1940 बीएसए पैराट्रूपर की नज़र उन पर पड़ी और उन्होंने साइकिलों के दिलचस्प मॉडल इकट्ठा करना शुरू कर दिया। साइकिलों के साथ-साथ विभिन्न सहायक उपकरण, घटक, तिपहिया साइकिलें, पैडल कार और भी बहुत कुछ आए। इसके बाद विंटेज मोबाइल के साथ कई पुरानी घरेलू उपयोगिताएँ, लैंप, इस्त्री, घड़ियाँ, कांच के बर्तन, रेडियो, तराजू आदि भी शामिल हो गए।

इन पुरानी वस्तुओं को उनके पूर्व गौरव पर पुनर्स्थापित करना अक्सर एक चुनौतीपूर्ण कार्य था।

प्रेम के इस परिश्रम में पांडुरंग गायकवाड़ विक्रम के साथ शामिल हो गए।

गायकवाड़, एक उत्साही साइकिल चालक ने दक्षिण एशियाई प्रतियोगिता में भारत का प्रतिनिधित्व किया है और लगातार पंद्रह वर्षों तक मुंबई-पुणे साइकिल दौड़ में भाग लिया है।

उनके मिडास स्पर्श ने पुरानी, ​​टूटी हुई कलाकृतियों को उनके प्रमुख युग में बदल दिया।

(English to Hindi Translation by Google Translate)

Bal Gangadhar Tilak – The Architect of Two National Festivals

Bal Gangadhar Tilak – The Architect of Two National Festivals

Bal Gangadhar Tilak – The Architect of Two National Festivals – This photo was taken at the Lokmanya Tilak Museum in Pune (Maharashtra).

युवा पीढ़ी को शिक्षा देकर उनके मस्तिष्क को तैयार करने के उद्देश्य से तिलक ने स्कूल और कॉलेज की शुरुआत की। शिक्षित वर्ग को सूचना उपलब्ध कराने, जनता का कल्याण करने तथा सरकार पर प्रभाव डालने के उद्देश्य से ‘केसरी‘ तथा ‘महरट्टा’ समाचार-पत्र प्रारम्भ किये गये। 1893 में गणेश महोत्सव को एक जन आंदोलन का रूप दिया गया ताकि शिक्षित, अशिक्षित, युवा और बूढ़े सभी लोग राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लें। गणेश महोत्सव पहले भी मनाया जाता था लेकिन वह एक निजी मामला था। तिलक ने मेलों को प्रोत्साहित किया और गणपति विसर्जन जुलूस को भी बढ़ावा दिया। तिलक ने युवाओं के उत्साह को उचित दिशा देने, कलाकारों की प्रशंसा करने और लोगों को शिक्षित करने का लक्ष्य हासिल किया। धीरे-धीरे गणेश महोत्सव ने पूना के बाहर भी सार्वजनिक उत्सव का स्वरूप ग्रहण कर लिया।

तिलक ने शिवाजी महोत्सव की भी शुरुआत की और 1896 में पहली बार इस तरह के उत्सव का आयोजन रायगढ़ किले पर किया गया था। रायगढ़ किले पर श्री शिवाजी की समाधि की मरम्मत के लिए धन एकत्र किया गया। इस उत्सव में गरीब से लेकर राजकुमारों तक सभी शामिल थे।

(English to Hindi Translation by Google Translate)

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